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कविता

आओ हट कर बात करें!

हरीश पाराशर ऋषु


हवाओं को थोड़ा मोड़कर, दिशाओं में अभिसार करें,
परिवेश ज्ञापन तो चलता है, आओ हट कर बात करें!

पैरों की चुभन मुस्‍कान बिखेरे, हर आह सुरों की धारा हो,
पथरीली सी राहों पर, नेहों की बरसात करें।

तन्‍हा सफर नहीं होने, न संसार दुखों का मेला है,
तेरा-मेरा छोड़कर, अब हम सौगात की बात करें।

भीतर अपने मंथन हो, बाहर दर्पन दिखता जाए,
हर मन कंचन, हर दृग पानी, संकल्‍प हमारा साथ चले 

भीतर अपने सागर है, मन सरिता को न रोका जाए
बेगानी सी क्‍यूँ जिंदगी, बस एक नई शुरुआत करें।
 


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